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Saturday, June 4, 2011

आजाद भारत में तानाशाही



वाह रे! लोकतंत्र की मिशाल..रामलीला मैदान में रात के अंधेरे में राजनीतिक फैसले से... ओतप्रोत पुलिस ने सत्याग्रहियों पर जो बर्बरता दिखाई वो लोकतंत्र की मिशाल नहीं बल्कि तानाशाह की परिचायिका है..जो भी हुआ वो राजधानी की गरिमा को गौरवान्वित नहीं बल्कि उसे मटियामेट करता है..किसी को भी आपत्ति अगर स्वामी रामदेव के साथ थी, अगर दोषी स्वामी रामदेव थे, अगर कानून स्वामी रामदेव ने तोड़ा था तो फिर सज़ा उन्हें क्यों मिली जिन्हें लोकतंत्र में अपनी बात कहने की छूट दी गई है..अगर आपमे इतनी कूबत भी नहीं की आप भारत में सिर्फ एक आवाज को रोक सके तो आप उन लाखों करोड़ों की आवाज़ को दबंगई से रोकने की कोशिश क्यों करते हैं ?...

जो कल रात हुआ उससे उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि हर एक भारतीय का मन छल्ली हो गया होगा..हर एक हिंदुस्तानी की आत्मा धिक्कार रही होगी..मानुष मन तड़प रहा होगा...हम जिन्हें अपना प्रतिनिधि बनाते हैं..जो हमारी ही सेवा के लिए हैं..उन्होंने ही जुल्म की इंतहा कर दी...


आपको रामदेव और उनके समर्थक दोषी दिखते हैं और वो दोषी या फांसी के काबिल नहीं दिखते जिन्होंने जनता के पैसे को वेश्या समझा और जब जहां जी चाहा, जब जी चाहा, जैसे जी चाहा, वहीं उसे अपने तरीके से लूटा...जो भी हो रहा है वो सिर्फ और सिर्फ लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं

Sunday, August 22, 2010

थोड़ा तो सब्र करो

कॉमन वेल्थ पर पिछले कुछ महीनो से मीडिया में ज़मकर किचकिच हो रहा है ..वजह भी है किचकिच की..लोगो को परेशानियां हो रही हैं...सडको पर लम्बे लम्बे ट्राफ्फिक जाम लग रहे हैं...सभी जगह गड्ढे खुदे हुए हैं..गाड़ियां फंस जाती हैं...ये परेशानियां हैं लोगों की..और सभी इसकी वजह सरकार को मानते हैं...क्यूंकि इस काम का ठीकरा उसी ने ले रखा है..पर अभी कुछ दिन पहले ही मेरे एक भैया विदेश से होकर आये आये और उन्होंने कहा की मैं जब वह पहुंचा तो एअरपोर्ट के कर्मचारी से लेकर होटल का मेनेजर तक मुझे फिलहाल इसी तरीके से जान पाया की मैं उस जगह से आया हूं जहाँ इस साल कॉमन वेल्थ होना है
तो भैया मैं बात सिर्फ इतनी ही कहना चाहता हूं क्या अगर आप सभी को इस नाम से या इस तरीके जाना जायेगा की आप उस सहर से आये हैं जहा कॉमन वेल्थ हो रहा है तो आपकी तौहीनी हो जाएगी क्या...नहीं न..तो थोडा सब्र करो..गांधीजी, नेहरु जी ने देश आज़ादी के लिए क्या क्या नहीं किया..आपकी सड़क गड्ढे में फंस जाती है तो मीडिया बुलाकर गाड़ी नंबर का प्रचार क्यूँ करते हो..जरा कभी अपने देश के बारे में भी तो सोचो..की हमें अगर जरा सी परेशानी हो भी रही है तो क्यूँ हो रही है..थोडा तो सब्र करने की माद्दा अपने अन्दर रखो..
आप सभी देश वासियों से गुजारिश है की सोच को सही और सकारात्मक दिशा की ओर ले जाने की जरुरत है

Monday, July 26, 2010

वाह रे दिल्ली???????

दिल्ली में रोज़ रोज़ हादसे होते हैं..कभी चोरी, कभी डकैती, कभी सड़क हादसे और फिर भी दिल न भरे तो सरेआम क़त्ल..दिल्ली में अभी जोरो सोरो से सड़क बनाने का काम चल रहा है..बनाने का या बिगड़ने का ये तो देख कर मालूम चलता है..कल रात भी ऐसा ही कुछ हुआ..जल्दबाजी में रातोरात काम निपटने का काम चल रहा था..नशे में चूर दो दारू बाज़ ने एक साथ ११ लोगो पे तेज़ रफ़्तार कार चला दी...४ मजदूर कि मौत हो गयी जबकि ७ घायल हो गए...पर विडम्बना देखिये कोई भी अधिकारी उन् मजदूरों कि सुध लेने नहीं गया..सही में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता मरता कौन है...ये कहने के लिए था...फर्क पड़ता है...सभी को..अगर ये हादसा BMW से हुआ होता और एक भी मजदूर न मरे होते तो भी सारे दिन सुर्ख़ियों में होता...मजदूर नहीं, BMW ...मजदूर मरे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता..आये दिन ऐसा होता है कि दिल्ली कि सडको पर हादसा होता है पर हमेसा देखने में आता है कि अगर हादसा किसी BMW  या MRZ  से होता है तो सुर्खियाँ बनती हैं वरना कोई फर्क पड़ता...ऐसा लगता है जैसे कि एक इंसान से ज्यादा ४ पहियों वाली महंगी गाडी कि कीमत ज्यादा है..ऐसा सिर्फ सुर्खियाँ देने वालो तक ही सीमित नहीं बल्कि सरकार के लिए भी है..भगवान् जाने गरीब इंसानों कि कीमत कब होगी..

Saturday, July 24, 2010

मियां अज़हर चले निकाह करने



आज मेरे यार की शादी है...मेरी भी शादी हो जाये दुआ करो सब मिल के...की आ जा नाच ले...आप सोच रहे होंगे की सठिया गया है अभिषेक...पर नहीं..ऐसा कुछ नहीं है..मैं तो ये शादी के कुछ गाने गुनगुना रहा हूँ.अरे नहीं नहीं..अपने लिए नहीं...अज़हर भाई के लिए...तीसरी शादी जो करने जा रहे हैं...भैया की शादी में भाई तो दीवाना होगा न...फ़र्ज़ बनता है भाई..कुछ दिनों से उड़ रही अफवाह अब सच होने को आ रही है..अपने भारतीय स्टार बल्लेबाज़ मोहम्मद अजहरुद्दीन बहुत जल्द तीसरी शादी कर सकते हैं..खबर पक्की तो नहीं है..पर कच्ची भी नहीं..ऐसी उड़ती उड़ती पर सच्ची खबर आई है कि बैडमीन्टन बाला जवाला गुट्टा से अज़हर भैया तीसरी बार निकाह करेंगे...ये ज्वाला भाभी भी दूसरी बार दुल्हनियां बनेंगी...वैसे तो दोनों ने ही इस बात से इनकार किया है पर इनकार में भी इज़हार-ए-मोहब्बत टप टप टपक रहा था..टपकना भी चाहिए..आखिर प्यार भला छुपाने से छिपता है क्या..
अब बात संगीता भाभी की..अरे वही अपने अज़हर भैया की जोरू..सुनने में आया है की आजकल मुंबई चली गयी हैं..भैया को मुरादाबाद ही छोड़ दिया है. छोड़े भी क्यूँ न..अब अपने मियाँ की शादी अटेंड करेंगी तो क्या अच्छा लगेगा भला..वैसे भाभी समझदार हैं..हो सकता हैं रिसेप्सन में डांस करने आ जाये..आना भी चाहिए भाई...मियां की जो शादी होगी..वैसे संगीता भाभी गाना क्या गायेंगी. "मेरा मियाँ बना है दूल्हा और ज्वाला बनी है जोरू अरे मुझे भी कोई मिल जाये, दुआ करो ओ सल्लू"..समझ गए न आप..अपने सल्लू भाई की पुरानी आइटम हैं भाभी संगीता बिजलानी जी...
अक्सर ऐसा देखने में आया है कि एक उम्र में लोगो को फिर से प्यार होता है..जैसे अजहर भैया को ४७ साल कि उम्र में २६ साल कि खिलाड़ी पसंद आई..ज्वाला जी भी शादी शुदा हैं..बच्चो का मुझे मालूम नहीं..पर इनके पति चेतन आनंद जी भी बड़े नामी खिलाड़ी हैं, बेडमीन्टन के...कांस्य पदक भी जीता है..पर शायद अपने घर कि बाज़ी हार गए..लेकिन क्या करना है चेतन भाई को भी..बड़े खिलाड़ी भैया हैं..कोई न कोई खेल खेलेंगे जरुर..खेलना भी चाहिए..कब तक अकेले पारी खेलेंगे..कम थोड़े ही हैं..
चेतन भैया भी गायेंगे "आई  एम  ए  बैचलर, अकेला हूँ बीमार हूं, एक नई खिलाड़ी से मिलने को बेकरार हूं"
अच्छा इन बातों से यही नज़र आता है कि हमारा समाज और हमारे समाज में व्याप्त जातियां अपने दोगले धर्म को अपनाती हैं...जहाँ एक तरफ ओनर किल्लिंग के नाम पर मासूमो को मार काट रहे हैं वही एक "बड़े जाती और रसूख" वाले लोग तीन तीन बार शादी कर रहे हैं तो समाज को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है..न ही कोई समाज को सिख देने वाली बात कर रहा है..वरना दिल्ली जैसे जगह में भी छोटी मानसिकता वाले लोग बसते हैं जो सामाजिकता के नाम पर अपे ही खून का खून करने में नहीं सोचते..लेकिन भैया हमें क्या..
हमें तो बस पूड़ी-बुनिया का बेसब्री से इंतज़ार है..बुलाहट आये या न आये..पैय्जामा-कुरता झार के चल देंगे..गायेंगे भी.."मेरा यार बना है दूल्हा और फूल खिले हैं दिल के, अरे मेरी भी एक बार शादी हो जाये, दुआ करो सब मिल के"

Friday, July 23, 2010

विधायक जी का विद्रोह अब तो रोल बैक हो

 आंध्र, कभी जम्मू, कभी कर्णाटक, कभी बिहार और कभी देश के सबसे बड़े सदन में कुर्सियों का चलना, फेंकना, तोड़ा जाना बिलकुल आम हो गया है..बिहार में तो हद्द हो गयी...पहले विधायक रात भर सदन में रहते हैं फिर सुबह होते ही गुंडागर्दी पे उतर आते हैं...वह कुमारी ज्योति काली बन जाती हैं और परिसद के बाहर किये जाने पर मार्शल्स पर गमले मार कर धौंस दिखाती है..आखिर इन जनता के प्रतिनिधिनियो को हो क्या गया है..क्यूँ ये भूल गए हैं की इन्हें जनता ने लड़ने के लिए नहीं चुना बल्कि कुछ भले का काम करने के लिए चुना है..ये कब तक चलेगा...इन बेलगाम विधायको और सांसदों पर लगाम लगाने की जरुरत है...और ये जरुरत पूरी तब होगी जब जनता को ही चुने हुए इन बदतमीज़ नेताओ को वापस बुलाने का अधिकार दिया जाये. यानि की रोल बैक पॉवर...बदलाव जरुरी है..वक़्त आ गया है...हम सभी को जागना होगा क्यूंकि हम सोते बहुत हैं..जागो भाइयों जागो..वरना फिर हमेशा के लिए सोने को तैयार हो जाओ

Wednesday, July 21, 2010

टिप टिप बरसा पानी...पानी ने आग लगाई

बादलों की गड़ गडाहत..पानी की रिम झिम बुँदे और हसीन मौसम...ये शायद इन् दिल्ली वालो को पसंद नहीं आती..थोड़ी बारिश हुई नहीं की दिल्ली सरकार को कोसना शुरू...आखिर ये दिल्ली वाले चाहते क्या है मालूम नहीं...गर्मी होती है तो भगवान को सुनाते हैं..ठंडी होती है तो अल्लाह को कोसते हैं और जब बरसात होती है तो सरकार को गरियाते हैं...दरअसल महानगरो में रहने वालो का घर ac , गाड़ी ac और ऑफिस ac की आदत पद चुकी  है...उन्हें सिर्फ चमकती हुई सड़के चाहिए....बारिश देखनी हो तो कभी हमारे बिहार जाके देख आइये..कोसी में बढ़ आ गयी...लाखो का नुक्सान हो गया.. लेकिन सरकार जगी १० दिनों बाद...फिर मची हाय तौबा लेकिन नेताओ की...वह जनता तब भी मस्त थी..कुछ लोगो के आशियाने बर्बाद हो गए थे पर उन्हें उम्मीद थी की ये आशियाना फिर बनेगा और सपने फिर से बुने जायेंगे....न ही बर्बादी का गम मानते हैं...न बारिस को आफत बताते हैं.

Thursday, July 15, 2010

पॉल की दुनिया

वाह रे पॉल बाबा..कमाल कर दिया आपने..ये मैं नहीं कह रहा बल्कि साड़ी दुनिया कह रही है..चमत्कार को दुनिया नमस्कार करती है...ऐसा सुना था पर अब देखा है..कहा जाता है की भारत अंधविश्वास का देश है
 पर ये बिलकुल गलत है ... अर्जेंटीना को देखिये वहां तो एक व्यक्ति ने दुसरे ऑक्टोपस को मार डाला..और मन नहीं भरा तो उसने भून कर खा गया..ये क्या है ...सिर्फ और सिर्फ अंधविश्वास...पॉल या ऑक्टोपस जो भी कहो..इसने कुछ किया या नहीं किया लेकिन ये जरुर दुनिया को बता डाला की आप सभी मुर्ख हो जिसे कोई भी कभी भी बेवकूफ बना सकता है.
लेकिन इसी सिक्के का दूसरा पहलु भी है.. की क्या कोई जानवर एक नहीं दो नहीं तीन नहीं बल्कि आठ बार सही भविश्यवाणी कर सकता है..ये सवाल है और पहेली भी जिसका न जवाब है और न ही कोई सुलह...

Sunday, April 25, 2010

मैच पर महाभारत

 द्रौपदी के चीरहरण पर कौरवो और पांडवो के बीच महाभारत हुआ, सुनंदा पुष्कर को IPL के मैदान में लाने पर भी महाभारत हुआ पर ये कलयुग की महाभारत बड़ी अजीबो गरीब रही. यहाँ युध्ह सिर्फ कौरवो और पांडवो के बीच नहीं हुआ. बल्कि युध्ह में सभी कूद पड़े जिम्की भी छवि में पैसे की बू आ रही थी.
दरअसल इस युध्ह की शुरुआत बड़े बेदम तरीके से हुई. कलयुग में इन्टरनेट का ज़माना है,  सो लड़ाई भी इन्टरनेट से शुरू हुई. इन्टरनेट के जरिये लिखने और बोलने की छूट है. ट्विट्टर जैसे प्रचलित SITES भावनायो का क़द्र किया करते हैं. आप लिखेंगे और ये लिखने के लिए पेन और कागज़ दोनों मुहैया करैयेंगे. ये भी दोनों बिलकुल हितेच.  लिखते जाइये नन्ही पेन के इंक के कह्तं होने का डर न ही कागज़ ख़त्म होने का डर.
बस शुरू हो गयी लड़ाई. सबसे पहले IPL के कमिश्नर ने अपने दिल की आरज़ू को ट्विट्टर पर लिखा. नाम लिया केंद्रीय मंत्री शशि  थरूर की महिला मित्र सुनंदा पुष्कर का. और शुरू कर दिया बखेड़ा. शशि थरूर जो की भारतीय राजनीती में अभी नए नए आये हैं, को मालूम न था कि यहाँ आरोप प्रत्यारोप कि राजनीति होती हैं न कि सफाई देने कि राजनीति. बेचारे थरूर चल पड़े सफाई देने. ट्विट्टर मास्टर थरूर ने सफाई दी कि निजी रिश्तों को किसी भी विवाद में शामिल करना उचित नहीं.  मोदी भी कहा मानने वालो में से थे. दुश्शासन की तरह सुनंदा कि शादी खीचने में लगे रहे. थरूर ने अपनी भूमिका कृष्ण के समान रखी. और फिर दे दिया इस्तीफा. कहा अब सुनंदा का नाम न जोड़ना.  सुनंदा ने जवाब में कहा कि थरूर अछे दोस्त हैं और मैं उनकी प्रवक्ता नहीं. सही बात हैं भाई! आप किसी महिला मित्र को प्रवक्ता बनायेंगे तो नाराज़गी जाहिर है. लेकिन ललित भाई भी काले से लाल पड़ गए. सुनंदा का नाम तो उनकी जुबान पे चिपक गया था. हर वक़्त उन्ही का चरण करते पाए जाने लगे. अबकी बार नाम लिया तो कहा कि IPL में सुनंदा का पैसा लगा है.  पैसो का जरिया थरूर को बता डाला. थरूर पर मोदी ने इलज़ाम लगाया. कहा कि थरूर ने पैसो कि लेन देन के बारे में बताने से मन किया था. थरूर ने मोबाइल का इस्तेमाल किया था. फोन पर खा कि पैसो के बारे में न बताना. अब थरूर भी गरमा गए थे. कहा कि ललित झूठा है. सेठ होकर झूठ बोल रहा है. बकवास बातें कर रहा है. मैंने उसे फ़ोन किया था पर काम कुछ और था. अरे! अब दुसरे विभाग के नेता जी  को अब IPL के मालिक से क्या मतलब था जो फ़ोन कर डाला. पर उन्होंने भी अपना मुह खोला. कहा फ़ोन किया था पर कोच्ची फ्रेंचैजी  के लिए. थरूर पूरी तरह गरमा गए थे. कहा ललित फ्रेंचैजी देने के मूड में नहीं थे. उन्हें अह्मेदाबाद से प्यार था. ललित मोदी को नरेन्द्र मोदी में भाईचारा दिख रहा था. दिखना भी चाहिए मोदीवादी प्रथा जो चलानी थी. पर बात बनी नहीं और मोदी बिफर पड़े.
येतो कलयुग महाभारत का वाक्युध्ह था. अभी बहुत कुछ होना बाकि था. शुरुआत संसद में विपक्ष के हंगामे से हुआ. कहा IPL लुटेरो का अड्डा है. थरूर से इस्तीफा मांगो. थरूर बेचारे लाख मिमयाते रहे. पर कुछ न हुआ. सफाई भी देना चाहते थे पर सदन में विपक्ष के हो हल्ला के बीच आवाज़ दब गयी. बैठकों का दौर चलने लगा. कभी प्रणब बाबु सोनिया से मिलते, कभी प्रधानमंत्री से. कभी थरूर सोनिया, प्रणब से मिलते, कभी प्रधानमंत्री से. सूत्रों कि खबरे भी भारी मात्रा में आने लगी. आखिरकार बैठकों के दौर के बाद फैसला हुआ. थरूर के इस्तीफे का फैसला. थरूर ने कहा अपनी सरकार को कीच कीच से दूर रखने के लिए इस्तीफ़ा दे रहा हूँ. चलो भाई इस मैच में पहला विकेट तो गिर गया. लेकिन पारी कफी देर तक बिना रन के जरी रही.
अब ब्रेक के बाद बल्लेबाज़ी करने उतरी सुनंदा पुष्कर. पहले कहा कोई पैसा नहीं लगाया. दूसरी बार कहा कि इतना पैसा है कि मिल बाट कर कुछ खरीदने कि जरूरत नहीं. सही बाट है कि एक BEAUTISIYAN के पास कहाँ से इतना पैसा आया,  ये तो भगवन जाने. थरूर जरूर जानते होंगे., महिला मित्र जो हैं उनकी. बाद में माना पैसा लगाया है पर किसी के कहने पर नहीं अपनी मर्ज़ी से. कोच्ची कि टीम में सुनंदा ने ७० करोड़ लगाये थे. पर गौर कीजियेगा किसी के कहने पर नहीं बल्कि अपनी मर्ज़ी से. फिर कहा कि वो तो मेरे रौन्देवु के जरिये शेयर बनते हैं. ज्यादा कीच कीच होने लगी. कहा कि जब मेरे मित्र ही नहीं रहे तो मैं रह कर क्या करुँगी. ले लिया अपना ७० करोड़. पर न ही टीम को फर्क पड़ा न ही IPL को. ललित मोदी ने पूरी साडी खींच ली थी. थोड़े बहुत चीरकूट बचे थे जिससे सुनंदा कि लाज बची पड़ी थी. ललित कि नजाए उस चिरकूट पर भी थी. सुनंदा ने सोचा, यहाँ से बची कुची इज्ज्ज़त बचाकर निकल जाऊ. वरना ये ललित कि नज़र ठीक नहीं लग रही है. सो सुनंदा ने अपने को IPL और कोच्ची से अलग कर लिया. थरूर संग आराम से अब्ब पार्टियों में नज़र आने लगी. फ्री हो गए थे दोनों अपने कर्मो और जिम्मेदारियों से. अच्छा है लगे रहो.
सोचा अब्ब तो विवाद कह्त्मा हो जायेगा पर भैया ललित मदी जी को बेचैनी हो गयी थी. दर असल दो विकेट लेकर मोदी भाई साहब शेर बनने लगे थे. पर मालूम न था कि संसद से एक विकेट गिरने पर सरकार कितनी नाराज़ है. अब मामला सरकार का था. सबसे ताकतवार का. सो सरकार ने पारी संभालनी शुरू की. दूसरी तरफ खड़े थे शेर बने फिर रहे ललित भैया. उनकी हर गेंद का जवाब देने को सरकार तैयार खड़ी थी. पहला गेंद ललित ने फेंका. सरकार ने जवाब में इनकम  टैक्स का छापा मरवाया. दूसरा गेंद ललित ने फेंका जवाब में सभी फ्रेचैजियों पर छापा पड़ने लगा. तीसरा गेंद भी ललित ने फेंका. अबकी बार गेंद बौन्दरी के पार चली गयी. दरअसल मोदी पर इनकम टैक्स और प्रवर्तन निदेशालय का छापा एक साथ पड़ने लगा. ललित मोदी को घोटालो के सरदार के रूप में पेश किया. मोदी ने मिडिया में जवाब दिया कि मेरा कुछ नहीं होने वाला, अभी मेरे पाले में तीन गेंद पड़े हैं देखते जाइये. मान गए कि बन्दे में भी दम था. इतनी पीटाई खाने के बाद भी WWF के फाइटर  कि तरह उठ  खड़ा होता था. कोई बाट नहीं सरकार भी UNDERTAKER कि तरह नंबर १ बनने को तैयार खड़ी थी. सरकार ने अबकी बार GUGLI KHELI. BCCI को अपने PAALE में ले LIA. BCCI  के सभी ADHIKAARI मोदी के KHILAAF खड़े हो गए. SARAD PAWAR ने कहा मोदी इस्तीफा दे दो. मोदी ने कहा नहीं DUNGA. BCCI ADHYACHHA SHASHANK MANOHAR ने कहा कि मोदी SANTI से इस्तीफा दे दो. मोदी का जवाब कि किसी भी तरह नहीं DUNGA. मोदी ने DHAMKI भी दी कि ब्च्ची  क्या, कोई भी MUJHSE इस्तीफा नहीं ले SAKTA. अब कि बार BCCI के ADHIKAARI गरमा गए, कहा अब तो मोदी को इस्तीफा देना ही PADEGA,  CHAHE KAISE भी इस्तीफा दे. युध्ह के मैदान में BCCI और ललित मोदी मैदान पर खड़े थे.

Wednesday, October 22, 2008

वाह रे बिहारी..राज पर न पड़ पाये भारी

राज के गुंडा 'राज' ने आम जनता को पल भर के लिए तहस नहस कर डाला। ये तो पता नही की राज की ये ओछी राजनीति कहा तक सफल होगी लेकिन इतना जरूर है की अगर ये राज जनता के सामने आ जाए तो पता नही इनका हश्र क्या होगा ?
हाँ तो मैं कह रहा था की वाह रे बिहारी ! ऐसा पहली बार हो रहा है जब मैं एक साथ कई सारे बिहारियों को मुर्ख बनते देख रहा हूँ । पहली बार एक साथ कई सारे बिहारियों को किसी और की गलती किसी और पर उतारते हुए देख रहा हूँ । अरे हमारे प्यारे बिहारी भाइयों आपने एक साथ बिहार जाने वाली कई सारी ट्रेने रद्द करवा दी, कई सारी ट्रेनों को आग लगा दिया, कितने सारी ट्रेनों में सवार बेक़सूर जनता को लूट लिया।

मिला क्या आपलोगों को...

न ही वो मिला जिसकी आप लडाई लड़ रहे थे, न ही वो जिसे आप जेल में डालना चाहते थे, छुट गया वो राज जिसने अपनी गुंडागर्दी से मुंबई सहित पुरे देश को बदनाम कर दिया।

अब आप मुर्ख बिहारियों को क्या मिला मैं बताता हूँ...

आपने अपने लोगों को बरबाद कर दिया। अपने लोगों आघात किया । अपने लोगों के मन में अपने लिए ज़हर भर दिया। हमारे जैसे लोगों की नज़र में आप मुर्ख कहलाने लगे । आपने एक और बड़ी गलती की...रेलवे को काफी नुक्सान पहुँचाया । रेल मंत्री लालू यादव, जो की अपने बिहारी गेट-उप को आज तक बचाए हुए हैं, उन्हें बदनाम कर दिया है।
अगर हिमात दिखानी थी, तोड़फोड़ करनी थी तो ज़रा वह करते जहाबिहारियों का अपमान हुआ। वहां करते जहाँ बिहारी मार खाए । वहां आग लगते जहाँ हर बिहारी जिल्लत भरी ज़िन्दगी से रु-बी-रु हुआ। उसके घर तोड़फोड़ करते जो आराम से चैन की नींद सोयेगा । उनकी नींद हराम करते जिन्होंने आपके बिहारी भाई को मौत के घाट उतरा और खुले आम सडको पर उत्पात मचा रहे हैं।
लेकिन आपलोगों ने सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बिहारी भाइयों को नुक्सान पहुँचाया । आज हर बिहारी आप जैसे बिहारियों पर थू थू करता है। सिर्फ़ थू थू । कुछ सीख सको तो उन्हीं महारास्त्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओ से सीखो जो वार भी पूछकर करते है की तुम बिहारी हो ना ।

अपनों पे वार करोगे दोज़ख की ज़िन्दगी मिलेगी
अपनों से प्यार करोगे ज़िन्दगी में ज़न्नत मिलेगी

जय हिंद, जय भारत








Monday, October 20, 2008

सपने सपने होते हैं

हर इंसान अपने आँखों में एक सपने लिए घर से निकल पड़ता है। सोचता है मंजिल आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी। जिनके सपनो में ताक़त होती है और जिन्हें उन्हें पूरा करने की आमदा होती है वो तो जीत हासिल कर लेते हैं लेकिन उनका क्या जिन्हें अपने सपने पूरे करने की हिम्मत तो है पर जहाँ जरूरत आर्थिक हो जाती वह वो क्या करें ?
दरअसल आज का हर नौजवान अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है, कुछ करना चाहता है अपने और अपने परिवार के लिए लेकिन इस आर्थिक मंदी की दौर में किसी भी प्राइवेट संस्था में पढ़ाई लिखाई के लिए मोटे रकम की मांग की जाती है और उसका नतीजा हमारे और आपके सामने होता है कि जब उस संस्था से बच्चे निकलते है तो उन्हें नौकरी के नाम पर एक कागज़ का टुकडा पकड़ा दिया जाता है, जिसे लेकर वो मारे मारे फिरते रहते हैं ।
कहने से तात्पर्य ये है की सपने तो हर युवा वर्ग देखते है लेकिन सबकी इतनी कूबत नही होती की वो पैसो के बल पर इसे पूरा कर सके ।
ये मेरी ब्लॉग की सिर्फ़ शुरुआत है। कोशिश बहुत कुछ लिखने और आपको हर ख़बर से बाकायदा रूबरू करने का है जो जारी रहेगी ।