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Saturday, June 4, 2011

आजाद भारत में तानाशाही



वाह रे! लोकतंत्र की मिशाल..रामलीला मैदान में रात के अंधेरे में राजनीतिक फैसले से... ओतप्रोत पुलिस ने सत्याग्रहियों पर जो बर्बरता दिखाई वो लोकतंत्र की मिशाल नहीं बल्कि तानाशाह की परिचायिका है..जो भी हुआ वो राजधानी की गरिमा को गौरवान्वित नहीं बल्कि उसे मटियामेट करता है..किसी को भी आपत्ति अगर स्वामी रामदेव के साथ थी, अगर दोषी स्वामी रामदेव थे, अगर कानून स्वामी रामदेव ने तोड़ा था तो फिर सज़ा उन्हें क्यों मिली जिन्हें लोकतंत्र में अपनी बात कहने की छूट दी गई है..अगर आपमे इतनी कूबत भी नहीं की आप भारत में सिर्फ एक आवाज को रोक सके तो आप उन लाखों करोड़ों की आवाज़ को दबंगई से रोकने की कोशिश क्यों करते हैं ?...

जो कल रात हुआ उससे उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि हर एक भारतीय का मन छल्ली हो गया होगा..हर एक हिंदुस्तानी की आत्मा धिक्कार रही होगी..मानुष मन तड़प रहा होगा...हम जिन्हें अपना प्रतिनिधि बनाते हैं..जो हमारी ही सेवा के लिए हैं..उन्होंने ही जुल्म की इंतहा कर दी...


आपको रामदेव और उनके समर्थक दोषी दिखते हैं और वो दोषी या फांसी के काबिल नहीं दिखते जिन्होंने जनता के पैसे को वेश्या समझा और जब जहां जी चाहा, जब जी चाहा, जैसे जी चाहा, वहीं उसे अपने तरीके से लूटा...जो भी हो रहा है वो सिर्फ और सिर्फ लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं