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Wednesday, October 22, 2008

वाह रे बिहारी..राज पर न पड़ पाये भारी

राज के गुंडा 'राज' ने आम जनता को पल भर के लिए तहस नहस कर डाला। ये तो पता नही की राज की ये ओछी राजनीति कहा तक सफल होगी लेकिन इतना जरूर है की अगर ये राज जनता के सामने आ जाए तो पता नही इनका हश्र क्या होगा ?
हाँ तो मैं कह रहा था की वाह रे बिहारी ! ऐसा पहली बार हो रहा है जब मैं एक साथ कई सारे बिहारियों को मुर्ख बनते देख रहा हूँ । पहली बार एक साथ कई सारे बिहारियों को किसी और की गलती किसी और पर उतारते हुए देख रहा हूँ । अरे हमारे प्यारे बिहारी भाइयों आपने एक साथ बिहार जाने वाली कई सारी ट्रेने रद्द करवा दी, कई सारी ट्रेनों को आग लगा दिया, कितने सारी ट्रेनों में सवार बेक़सूर जनता को लूट लिया।

मिला क्या आपलोगों को...

न ही वो मिला जिसकी आप लडाई लड़ रहे थे, न ही वो जिसे आप जेल में डालना चाहते थे, छुट गया वो राज जिसने अपनी गुंडागर्दी से मुंबई सहित पुरे देश को बदनाम कर दिया।

अब आप मुर्ख बिहारियों को क्या मिला मैं बताता हूँ...

आपने अपने लोगों को बरबाद कर दिया। अपने लोगों आघात किया । अपने लोगों के मन में अपने लिए ज़हर भर दिया। हमारे जैसे लोगों की नज़र में आप मुर्ख कहलाने लगे । आपने एक और बड़ी गलती की...रेलवे को काफी नुक्सान पहुँचाया । रेल मंत्री लालू यादव, जो की अपने बिहारी गेट-उप को आज तक बचाए हुए हैं, उन्हें बदनाम कर दिया है।
अगर हिमात दिखानी थी, तोड़फोड़ करनी थी तो ज़रा वह करते जहाबिहारियों का अपमान हुआ। वहां करते जहाँ बिहारी मार खाए । वहां आग लगते जहाँ हर बिहारी जिल्लत भरी ज़िन्दगी से रु-बी-रु हुआ। उसके घर तोड़फोड़ करते जो आराम से चैन की नींद सोयेगा । उनकी नींद हराम करते जिन्होंने आपके बिहारी भाई को मौत के घाट उतरा और खुले आम सडको पर उत्पात मचा रहे हैं।
लेकिन आपलोगों ने सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बिहारी भाइयों को नुक्सान पहुँचाया । आज हर बिहारी आप जैसे बिहारियों पर थू थू करता है। सिर्फ़ थू थू । कुछ सीख सको तो उन्हीं महारास्त्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओ से सीखो जो वार भी पूछकर करते है की तुम बिहारी हो ना ।

अपनों पे वार करोगे दोज़ख की ज़िन्दगी मिलेगी
अपनों से प्यार करोगे ज़िन्दगी में ज़न्नत मिलेगी

जय हिंद, जय भारत








Monday, October 20, 2008

सपने सपने होते हैं

हर इंसान अपने आँखों में एक सपने लिए घर से निकल पड़ता है। सोचता है मंजिल आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी। जिनके सपनो में ताक़त होती है और जिन्हें उन्हें पूरा करने की आमदा होती है वो तो जीत हासिल कर लेते हैं लेकिन उनका क्या जिन्हें अपने सपने पूरे करने की हिम्मत तो है पर जहाँ जरूरत आर्थिक हो जाती वह वो क्या करें ?
दरअसल आज का हर नौजवान अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है, कुछ करना चाहता है अपने और अपने परिवार के लिए लेकिन इस आर्थिक मंदी की दौर में किसी भी प्राइवेट संस्था में पढ़ाई लिखाई के लिए मोटे रकम की मांग की जाती है और उसका नतीजा हमारे और आपके सामने होता है कि जब उस संस्था से बच्चे निकलते है तो उन्हें नौकरी के नाम पर एक कागज़ का टुकडा पकड़ा दिया जाता है, जिसे लेकर वो मारे मारे फिरते रहते हैं ।
कहने से तात्पर्य ये है की सपने तो हर युवा वर्ग देखते है लेकिन सबकी इतनी कूबत नही होती की वो पैसो के बल पर इसे पूरा कर सके ।
ये मेरी ब्लॉग की सिर्फ़ शुरुआत है। कोशिश बहुत कुछ लिखने और आपको हर ख़बर से बाकायदा रूबरू करने का है जो जारी रहेगी ।